KIRAN BEDI

KIRAN BEDI

"आसमान के सितारों का खाव्ब हम नहीं देखते, हम तो सितारों को अपने कंधों पर चमकाना चाहते है!"



Kiran Bedi was born on 9 June 1949 in Amritsar. She is the second child of Prakash Lal Peshawaria and prem lata. She has three sisters Shashi, Reeta and Anu. Bedi Graduated in 1968 with a B.A. (Honours) in English, from Government College for Women at Amritsar. The same year, she won the NCC Cadet Officer Award. she obtained a master's degree in political science from Panjab University, Chandigarh. From 1970 to 1972, Bedi taught as a lecturer at Khalsa College for Women in Amritsar.
            She became the national junior tennis champion in 1966. Between 1965 and 1978 she won several titles at national and state- level championships. After joining IPS Bedi served in Delhi, Goa, Chandigarh and Mizoram. She started her career as an Assistant Superintendent of Police ( ASP ) in chanakyapuri area of Delhi, and won the President's Police Medal in 1979. Next she moved to West Delhi where she brought a reduction in crimes against women. As a traffic police officer, she oversaw traffic arrangements for the 1982 Asian Games in Delhi. As DCP of North Delhi, she launched a campaign against drug abuse,which evolved into the Navjyoti Delhi Police Foundation.

             In May 1993, she was posted to the Delhi prisons as Inspector General (I.G.) She introduced several reforms at Tihar Jail, which gained worldwide acclaim and won her the Ramon Magsaysay Award in 1994. In 2003, Bedi became the first Indian woman to be appointed as a police advisor  to Secretary General of the United Nations, in the department of Peace Keeping Operations. She resigned in 2007 to focus on social activism and writting. She has written several books, and runs the India Vision Foundation. During 2008-11, she also hosted a court show Aap Ki Kacheri. She was one of the key leaders of the 2011 Indian Anti-Corruption movement. On 22 May 2016 Bedi was appointed as the Lieutenanat Governor of Puducherry.
           Awards And Recognition:
          In year 1979 received President's Police Medal from President of India for conspicuous courage in preventing violence during Akali Nirankari clashes
          Ramon Magsaysay Award, Philippines for Government service.
          United Nations Medal for Outstanding service.
          Mother Teresa Memorial National Award for social justice.
          FICCI Award of Excellence for being an outstanding woman achiever.
          L'Oreal Paris Femina Woman Award for Social Impact.

Article Written By..
Himangi Joshi
First Year
Fashion Design Department
ENVISAGE INSTITUTE OF DESIGN




(जागतिक महिला दिन)Best Fashion and Interior Design Institute in Borivali (west), “Envisage Institute of Design”

                      भारत में महिलाओं की स्थिति 
                              (जागतिक महिला दिन)

आज़ आज़ादी के ७० सालों बाद भी भारत में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। आधुनिकता के विस्तार के साथ साथ देश में दिन प्रतिदिन महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की संख्या के आंकड़े चौंकाने वाले है। उन्हें आज भी कई प्रकार के धार्मिक रीती रिवाजों, कुत्सित रूढ़ियों, यौन अपराधों, लैंगिक भेदभावों, घरेलु हिंसा, निम्नस्तरीय जीवन शैली, अशिक्षा, कुपोषण, दहेज़ उत्पीड़न, कन्या भ्रूणहत्या, सामजिक असुरक्षा, तथा उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। हालांकि पिछले कूछ दशकों में रक्षा और प्रशाशन सहित लगभग सभी सरकारी तथा गैरसरकारी क्षेत्रों में महिलाओं की बढाती भागीदारी, सुधरते शैक्षणिक स्तर, खेल, कौशल, सिनेमा, व्यापार, विज्ञान, और बदलता सामजिक नजरिआ, तथा उनके अधिकारों का कानूनी संरक्षण में भारी बदलाव देखा जा रहा है।लेकिन जब तक हमारे समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर मानने की मानसिकता विकसित नहीं होगी तब तक महिलाओं को उनका पूरा हक़ नहीं मिलेगा।
कित्तूर की रानी चिन्नम्मा 
        वैदिक काल में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त थे। उन्हें यज्ञ में शामिल होना, वेदों का पाठ करना तथा शिक्षा हासिल करने की आज़ादी थी। प्राचीन भारत में मान्यता थी के जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहा देवता निवास करते है। बाद में स्मृतियों ने (मनुस्मृति ) स्त्रियों पर पाबंदिया लगाना शुरू किया, जिस वजह से महिलाओं की स्थिति में गिरावट आना शुरू हुआ। इस्लामी आक्रमण के बाद तो भारतीय महिलाओ की स्थिति और भी ख़राब हो गई। इसी समय पर्दा प्रथा , बाल विवाह, सती प्रथा, जौहर प्रथा और देवदासी जैसी घृणित धार्मिक रूढिया प्रचलन में आई। मध्ययुग में भक्ति आंदोलन ने महिलाओं की  स्थिति को सुधारने के प्रयास जरूर किये, पर वो उस हद तक सफल नहीं हुआ। सिर्फ कुछ स्त्रिया जैसे की मीराबाई, अक्का महादेवी, रामी जानाबाई और लालदेद  ही इस आंदोलन का हिस्सा बन सकी। इसके तुरंत बाद सिख
धर्म प्रभाव में आया, इसने भी युद्ध नेतृत्व एवं धार्मिक प्रबंध समितियों में महिलाओ एवं पुरुषों की बराबरी के उपदेश दिए। अंग्रेजी शासन ने अपनी तरफ से महिलाओं की स्थिति को सुधारने के कोई विशेष प्रयास नहीं किये लेकिन १९ वी सदी के मध्य में अनेक धार्मिक सुधारवादी आंदोलन किये गए। जैसे ब्रह्मा समाज ( राजा राममोहन राय ), आर्य समाज ( स्वामी दयानन्द सरस्वती ), थिओसोफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण मिशन ( स्वामी विवेकानंद ), ईश्वरचंद विद्यासागर ( स्त्री शिक्षा )महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाईफुले ( दलित स्त्रियों की शिक्षा ) आदि ने अंग्रेजी सरकार की सहायता से महिलाओं के हित में
सती प्रथा का उन्मूलन १८२९ ( लार्ड विलियम बेंटिंक ) सहित कई कानूनी प्रावधान पास करवाने में सफलता हासिल की। इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद इस दौर में युद्ध, राजनीति,साहित्य,शिक्षा और धर्म से कुछ सुप्रसिद्ध स्त्रियों के नाम उभरकर सामने आते है। जिसमे से रजिया सुल्तान ( दिल्ली पर शासन करनेवाली एकमात्र महिला साम्राज्ञी ) गौंड की महारानी- दुर्गावती, शिवाजी महाराज की माता- जिजामाता, कित्तूर की रानी- चेन्नम्मा, कर्णाटक की महारानी- अब्बक्का, अवध की सह्शासिका बेगम हजरत महल, आगरा की नूरजहां, तथा झाँसी महारानी- लक्ष्मीबाई  के नाम प्रमुख है।
                  यु तो पहले भी माता तपस्विनी, मैडम कामा, और सरला देवी जैसी कई क्रांतिकारी महिलाये भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थी।

आजादी के बाद महिलाओं के लिए सामान अधिकार के कई अनुच्छेद बनाये गए।
लेकिन इतने सारे कानूनी प्रावधानों के बावजूद देश में महिलाओंपर होने वाले अत्याचारों में कमी होने के बजाऐ वृद्धि हो  रही है।
                भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में ७० के दशक से महिला सशक्तिकरण तथा फेमिनिज्म शब्द प्रकाश में आये जिनमे १९९० के भूमंडलीकरण तथा उदारवाद के बाद विदेशी निवास द्वारा शापित गैर सरकारी संगठनो के रूप में अभूतपूर्व तेज़ी आयी। इन संगठनो ने भी महिलाओं को जागृत कर उनमे उनके अधिकारों के प्रति चेतना विकसीत करने तथा उन्हें सामजिक आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
                स्त्री सुरक्षा और समता में उठाया गया हमारा प्रत्येक कदम किसी न किसी हद तक स्त्रियों की दशा सुधारने में कारगर साबित जो रहा है।  किन्तु समाज सुधार  की गति इतनी धीमी है के इसके यथोचित परिणाम स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाते। शिक्षा सभी दोषों से छुटकारा दिलाने का आधारभूत साधन है।  एक शिक्षित
जिजामाता 
स्त्री न केवल अपना बल्कि पुरे परिवार का कल्याण कर सकती है।  इसीलिए शिक्षा को केंद्र बनाकर तथा समुचित साधन और कानूनों का पालन सुनिश्चित  करके देश को महिला अपराध मुक्त बनाया जा सकता है।
               
रानी लक्ष्मीबाई 
आज की स्त्री कभी बेटि बनकर घर को सजाती है, तो कभी माँ बनकर अपने बच्चों की ज़िन्दगी सवारती है, जरूरत पड़ने पर आर्थिक सहायता देने और पुरषों के बराबर कंधे से कन्धा मिलाकर चलने में भी पीछे नहीं हटती।

धन्यवाद।

लेखिका
प्रतिमा कनोजिया
First Year
Fashion Design Department
ENVISAGE INSTITUTE OF DESIGN






(Best Fashion and Interior Design Institute in Borivali (west), “Envisage Institute of Design”)

TANYA GYANI

"There is no LIMIT to what we, as women, can accomplish".

A girl born in Chandigarh, India and studied in National Institute of Fashion Technology in Delhi, India and being a post graduate from Florence Design Academy in Florence, Italy in Interior designing.

Tanya went to Dubai, South of Finance, Hongkong and India to work as an Interior Designer, having lived and worked in this 4 countries gives her an appreciation to different cultures, aesthetic sensibilities and a global perspective which is seen in her work.

Tanya was awarded with the elite student award of the Florence Design Academy and currently she owns a boutique firm in Palo Alto, California and her work can be seen in Floral Design, Interior Design, Product Design in selected restaurants, Tech companies for almost a decade, she was chief interior designing consultant in one of the top real estate developers as the DIF and she also designed decorative art works for retailers like Pottery Barn, Michael aram, Crate & Barrel etc.

As a student of Interior Designing, Tanya Gyani being a successful woman, inspires me in all the ways and proves that hardwork pays off and also no women should be considered to be great as many women like Tanya who succeeded in various fields and proved the world wrong. Lastly I would like to conclude with "If you want something said, ask a man; if you want to something done, ask a woman".


"Every women's success should be an inspiration to another we are 'STRONGEST' when we cheer each other on".

HAPPY WOMEN'S DAY!!!

THANK YOU...


Written By...
DEVANSHI GADA
FIRST YEAR
INTERIOR DESIGN 
ENVISAGE INSTITUTE OF DESIGN









NEETA LULLA (BEST FASHION DESIGNER)

                                                            NEETA LULLA 
                      (Fashion Stylist and Costume Designer)



Women's empowerment simply means that women of our society have to give strength and authority. To give rights to women, we have to bring many changes in our society and both women and men have to be given equal status. The day in our society both women and men will start getting equal status is the day a new era in our society will start and that era will be the era of development. And here, the woman is considered to be a service to the husband and a householder. Until we empower all the women of our society completely, only then our country will develop. Our nation's father Mahatma Gandhi has said that unless all the women and men of our country work together, our country will not develop completely. It is also very important for women's empowerment that we should pay attention to women's studies as well. Until we will not teach women in our society, women empowerment will never happen. When there is power in a woman, she can bring change into the society.

Neeta Lulla is a fashion stylist and costume designer who has been a leading fashion designer since 1985 and has served in up to 300 Bollywood films. She has been associated with several A-listers like veteran actresses Madhuri Dixit and Aishwarya Rai as she designed their costumes for Devdas (2002), a Bollywood film which had set a unique fashion trend in India. Her first major client was Varuna Jani, a jewellery designer. She has focused completely to clients’ base from Bollywood industry. She also designed costume for Sapna, a prominent actress in South India. Then, she also designed for Sridevi and Salma Agha.



Neeta is a workaholic. She started from scratch and now rules the skies on her own. She has become an iconic name in fashion world and adorned hundreds of movies and got international fame. But her story is truly breathtaking and inspiring just like her designs.

Her story is inspirational for those who don’t have resources, ambition, or proper career planning. She is the perfect example of great transformation when opportunity strikes. She is known for great passion for her work. Now, she is every actress’s favorite.

She was born in a middle class family in Hyderabad. Her father was a businessman and her childhood was happy. Every month, her family used to visit Mumbai several times. Her studies were affected due to these visits. She was more fun loving and loves to watch films.

Her family had belief that girls are not meant to work outside.
Not many fans know that she got married to a psychiatrist when she was 16 and her husband was 11 years older to her. Just to avoid further studies, she married to him. But her plan didn’t work as her in-laws also forced her to study and make career. Now, she had just two options – either to start tailoring or cooking. So, she developed a lot of interest in fashion and styling. She got her bi-monthly fashion magazines when she was at young anger. So, she made decision to enroll a course of garment manufacturing and pattern making in SNDT, Mumbai.

Although her husband Shyam Lulla was supportive, she decided to become independent. She had integrity to do something more than ordinary. Definitely it took much time to arrange money herself. But she decided to stick to ethics. This is how a legend was born.

She added that she cannot work in specific parameters, excluding films. She always wants to do something different. She hates boredom. She started to collect money by making egg sandwiches and had enough savings to get the first sewing machine from her income. She started with just one tailor with Rs. 500. Gradually, she increased the numbers.

Neeta Lulla is a fashion designer who used to sell sandwiches so she could collect funds for her first sewing machine and to hire a tailor. Today, she leads the staff of 250 employees. She worked in more than 300 films and is the winner of four National Awards. Hence, she is the only designer who rose to such prominence. Working without thinking of time, hours of brainstorming, and giving priority to work over anything else literally paid her off and made her an iconic figure from an ordinary woman.

Her 2016 collection "#SheIsMe" simultaneously communicated both gentleness and resilience in the face of abuse. The collections debut at Lakme Fashion Week included a dance recital that spoke against women abuse. Later in her career, Lulla opened The Whistling Wood International Neeta School of Fashion in her home city of Mumbai. The institute offers a selection of courses in fashion, merchandising and online marketing. The school is currently owned by Subash Ghai who has worked with Lulla on several films.

She got so many awards like:-

  • National Film Award for Best Costume Design 2012 for Balgandharva
  • National Film Award for Best Costume Design 2009 for Jodhaa Akbar.
  • IIFA Best Costume Design Award 2009 for Jodhaa Akbar.
  • Kingfisher Fashion Award 2005 for Contribution to Fashion
  • Bollywood Movie Award – Best Costume Designer 2003 for Devdas.
  • Zee Cine Award for Best Costume Designer 2003 for Devdas.
  • National Film Award for Best Costume Design 2002 for Devdas.
  • Bollywood Movie Award – Best Costume Designer 2001 for Mission Kashmir.
  • IIFA Best Costume Design Award 2000 for Taal.

She also has an advice to wannabe fashion designers and her fans, “Education always helps to polish your talent. It shouldn’t let you down. You should focus on your technical skills and key strengths."

websitehttp://www.neetalulla.com/

National Award For Best Costume: 

Film Devdas:
 https://en.wikipedia.org/wiki/National_Film_Award_for_Best_Costume_Design

Film Jodha Akbar:
https://en.wikipedia.org/wiki/National_Film_Award_for_Best_Costume_Design

Film Balgandharva:
https://en.wikipedia.org/wiki/National_Film_Award_for_Best_Costume_Design


Thank You....

Article Written by,

Ms. Mamta Bhanushali
First year
Fashion Design Department
Envisage Institute Of Design









Best Fashion and Interior Design Institute in Borivali (west), “Envisage Institute of Design”

                                                                    मेरी कॉम 
                               (भारत की महिला मुक्केबाज़)


पुरुष और महिला दोनों ही अनुभवों में अद्वितीय और अलग हैं और निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रभाव लाने के लिए दोनों महत्वपूर्ण हैं। समाज में पुरु'षों और महिलाओं को समान अधिकार काम की गुणवत्ता और इस प्रकार राष्ट्र की आर्थिक स्थिति में सुधार करते हैं।
 भारत एक विकासशील देश है और पुरुष प्रधान देश होने के कारण इसकी आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब है।पुरुषों का मतलब देश की आधी शक्ति है और वे अकेले चल रहे हैं और उन्होंने महिलाओं को केवल घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया है।वे नहीं जानते कि महिलाएं देश की आधी शक्ति हैं और अगर महिला और पुरुष गठबंधन हो तो देश पूर्ण शक्ति बन सकता हैं।जिस दिन देश की ये दोनों शक्ति काम करना शुरू कर देगी, कोई अन्य देश भारत से अधिक शक्तिशाली नहीं होगा।भारतीय पुरुष कभी भी भारतीय महिलाओं की शक्ति का एहसास नहीं करते हैं, वे पुरुषों की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं।

एक सफल मुक्केबाज होने के लिए एक मजबूत दिल होना चाहिए,उत्साह और सही लड़ाई की भावना भी होनी चाहिए। हम पुरुषों की तुलना में कड़ी मेहनत करते हैं और अपने राष्ट्र को गौरवान्वित करने के लिए अपनी पूरी ताकत से लड़ने के लिए दृढ़ हैं।

जीवन में आपकी पृष्ठभूमि आपके ऊपर कोई शक्ति नहीं रखती है। यदि आप जुनून और अन्य लोगों के जीवन पर एक छाप बनाने की क्षमता रखते हैं, तो आप निश्चित रूप से प्राप्त करने के तरीकों की तलाश करेंगे, जो आप प्रयास करते हैं  मैरी कॉम न केवल यह साबित करती है, बल्कि वह हर उस अपेक्षा को पार कर गई है, जो लोगों से थी।
मणिपुर के छोटे से गांव कांगथेई में जन्मे, उनके माता-पिता एक खेत में मजदूर के रूप में काम करते थे। मैरी का बचपन काफी कठिन था और अपने भाई-बहनों की देखभाल करने के साथ-साथ काम करना भी उनका एक हिस्सा था भले ही उसने अपनी पढ़ाई बहुत पहले ही छोड़ दी, लेकिन उन्होंने खुद को अपने सपनों का पीछा करने से नहीं रोका।
उनकी कड़ी मेहनत तब रंग लाई जब उन्होंने 1998 में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। जीत ने उन्हें प्रेरित किया, और उन्होंने नए उत्साह के साथ एक पेशेवर मुक्केबाज के रूप में अपने करियर को आगे बढ़ाने का फैसला किया - एक ऐसा निर्णय जो बहुत कठिन था। उन्हें अपने माता-पिता से  बहुत विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने एक युवा लड़की के लिए मुक्केबाज़ी एक अनुपयुक्त खेल माना था - जब वह लगातार 5 बार नेशनल बॉक्सिंग चैंपियन बनी तो सब कुछ गलत साबित हुआ।
मैरी कॉम ने न केवल खुद को एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एथलीट के रूप में स्थापित किया, बल्कि पूरी दुनिया में महिलाओं और युवा लड़कियों के लिए एक महिला आइकन बन गईं। २०१२ ओलंपिक्स में भारत का मुक्केबाज़ी में नेतृत्व करनेवाली वह पहली महिला मुक्केबाज़ बनी और उन्हें वहाँ तिरंगा ले जाने का सम्मान मिला । वह लंदन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली महिला थीं और वहाँ उन्होंने भारत के लिए मुक्केबाजी में कांस्य पदक भी जीता।
मैरी कॉम महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गईं, जब उन्होंने उस रूढ़ि को तोड़ा, जिसमें विवाहित महिलाएं विशेष रूप से माताएं अपने धैर्य और दृढ़ संकल्प के जरिए सफल एथलीट नहीं बन सकतीं।

प्रसिद्ध कवी रूमी ने कहा "नारी ईश्वर की किरण है। वह सांसारिक प्यारी नहीं है : वह रचनात्मक है, निर्मित नहीं है।"
हर इंसान जो काम कर रहा है हम उसे आदमी या औरत की सोच से देखते है। आखिर क्यों ?
हम नारीशक्ति को पुरुषों से तुलना कर के क्यों देखते है।

भगवान् ने माता बनने की जिम्मेदारी औरत को दी क्यों की आदमी नहीं सह पायेगा माँ बनने का दर्द। वो नहीं संभाल पायेगा इतनी बड़ी जिम्मेदारी।

प्रियंका चोपड़ा ने खूब कहा है, "आप एक सम्पूर्ण महिला हो सकती है , स्मार्ट और सख्त भी हो सकती है और अपने स्त्रीत्व को  खो सकती।"

तो फिर हम ये क्यों नहीं मानते ???????

कि पुरुष और महिला के बीच कोई अंतर नहीं है।

धन्यवाद....

लेखिका
हिमानी प्रजापति
First Year
Fashion Design Department
Envisage Institute Of Design

Best Fashion and Interior Design Institute in Borivali (west), “Envisage Institute of Design”

                         आनंदीबाई गोपाळराव जोशी
                                                    (भारतातील पहिली महिला डॉक्टर)



जीवन :   आनंदीबाई जोशी यांचा जन्म ३१मार्च १८६५ रोजी पुण्यात त्यांच्या आजोळी झाला. आनंदीबाईंचे पूर्वाश्रमीचे नाव यमुना होते, जुन्या कल्याण परिसरातील पारनाका येथे राहणाऱ्या गणपतराव अमृतेश्वर जोशी यांच्या जेष्ठ कन्या होत्या. वयाच्या नवव्या वर्षी  त्यांचा विवाह वयाने २० वर्षांनीं मोठे असणाऱ्या गोपालराव जोशी यांच्याशी झाला. गोपाळराव जोशी हे मुळचे संगमनेर जिल्हा अहमदनगर येथील रहिवासी होते लग्नानंतर गोपाळरावांनी आपल्या पत्नीचे नाव आनंदीबाई असे ठेवले. लग्नापूर्वी त्यांचे नाव यमुना असे होते वयाच्या चौदाव्यावर्षी अनंदीबाईंनी एक मुलाला जन्म दिला परन्तु वैद्यकीय उपचार न मिळाल्यामुळे मूल फ़क्त १० दिवस जगले. आनंदीबाईंच्या  जीवनात हा  एक महत्वाचा टप्पा ठरला आणि त्यांना  डॉक्टर बनण्याची प्रेरणा मिळाली. गोपाळरावांनी त्यांना मिशनरी शाळांमधे प्रवेश मिळावा म्हणून प्रयत्न केला, कलकत्त्याला गेल्यावर तिने संस्कृत आणि इंग्रजी वाचणे आणि बोलणे शिकले.
           गोपाळराव कल्याणला पोस्ट ऑफिसात कारकुन होते नंतर त्यांची अलीबाग येथे आणि नंतर कोलकाता येथे बदली झाली. ते एक पुरोगामी विचारवंत होते, आणि त्या काळातही त्यांचा महिला शिक्षणाला पाठिंबा होता.  आपल्या पत्नीने वैद्यकीय शिक्षण घेऊन डॉक्टर बनावे असा त्यांचा आग्रह होता ते स्वतः लोकहितवादींची शतपत्रे वाचत आपल्या पत्नीला शिक्षणात रस आहे हे गोपाळरावांनी जाणले लोकहितवादींच्या शतपत्रांमुळे ते प्रेरित झाले आणि आपल्या पत्नीस इंग्रजी शिकवण्याचा त्यांनी निश्चय केला.

वैद्यकीय शिक्षण:   आनंदीबाईंच्या वैद्यकीय शिक्षणाच्या बाबतीत गोपाळरावांनी अमेरिकेत काही पत्रव्यवहार केला परंतु हे शिक्षण घेण्यासाठी ख्रिस्ती धर्म स्वीकारण्याची अट होती, आणि धर्मांतर करणे तर त्यांना मान्य नव्हते. मात्र त्यानी प्रयत्न सोडले नाही.  पुढे आनंदीबाईंची तळमळ आणि गोपाळरावांची चिकाटी  यांचे फलित म्हणजे आनंदीबाईंना ख्रिस्ती धर्म न स्वीकारता १८८३ मध्ये  वयाच्या १९ व्या वर्षी ”विमेंस मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेन्सिल्विनिया" मध्ये प्रवेश मिळाला.  येथे गेल्यानंतर अमेरिकेतील नविन वातावरण आणि प्रवासातील दगदग यामुळे आनंदीबाईंची प्रकृति ढासळली होती. परंतु अमेरिकेतील कारपेंटर जोडप्याचे साहाय्य त्यांना लाभले
सुरुवातीला तात्कालीन भारतीय समाजाकडून आनंदीबाईंच्या डॉक्टर होण्याला खुप विरोध झाला. त्यावेळी आनंदीबाईंनी कोलकाता येथे एक भाषण केले. तेव्हा त्यांनी भारतामधे महिला डॉक्टरांची किती आवश्यकता आहे हे पटवून दिले, आणि हे स्पष्ट सांगितले की मला यासाठी धर्मांतर वगैरे करण्याची काही गरज नाहीये. मी माझा हिंदू धर्म व संस्कृती यांचा कदापि त्याग करणार नाही. मला माझे शिक्षण पूर्ण झाल्यावर भारतात येऊन महिलांसाठी एक वैद्यकीय महाविद्यालय सुरु करायचे आहे.
             आनंदीबाईंनी केलेले हे भाषण लोकांना खुप आवडले. त्यामुळे त्यांना होणारा विरोध तर कमी झालाच पण त्यांना या कार्यात हातभार म्हणून सबंध भारतातून आर्थिक मदत जमा झाली. भारताचे तात्कालीन वॉइसरॉय यांनी पण २०० रुपयांचा फंड जाहिर केला. कष्टाच्या आणि जिद्दीच्या जोरावर अभ्यासक्रम पूर्ण करुन मार्च १८८६ मधे आनंदीबाईंना एम्.डी. ची पदवी मिळाली. एम्. डी. साठी त्यांनी जो प्रबंध सादर केला त्यांचा विषय होता, ‘हिंदु आर्य' लोकांमधील ‘प्रसूतिशास्त्र'. एम्. डी. झाल्यावर विक्टोरिया राणीकडून सुद्धा त्यांचे अभिनंदन झाले. त्यांच्या पदविदान समारंभाला गोपाळराव स्वतः उपस्थित राहिले; ‘भारतातील पहिली स्री डॉक्टर' म्हणून सर्व उपस्थितानी उभे राहून जोरदार टाळ्या वाजवून आनंदीबाईंची प्रशंसा केली ,
              एम्. डी. झाल्यावर आनंदीबाई जेव्हा भारतात आल्या तेव्हा त्यांचे स्वागत व अभिनंदन झाले. त्यांना कोल्हापूरमधील अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटलमधील स्री कक्षाचा ताबा देण्यात आला.

 मृत्यु:    वयाच्या विशितच त्यांना क्षयरोग झाला होता. पुढे काही महिन्यांतच म्हणजे २६ फेब्रुवारी इ. स. १८८७ रोजी त्यांचा पुण्यात मृत्यु झाला. केवळ २१ वर्षांच्या जीवनयात्रेत आनंदीबाईंनी भारतीय स्रियांसाठी प्रेरणादायी जीवनादर्श उभा केला. दुर्दैवाने आनंदीबाईंच्या बुद्धिमत्तेचा आणि ज्ञानाचा फायदा जनतेला होउ शकला नाही. 
मात्र चूल आणि मूल  म्हणजेच आयुष्य असे समजणाऱ्या महिलांना त्या काळात आनंदीबाई जोशी यांनी आदर्श आणि मानदंड घालून दिला. जिद्द आणि चिकाटी असेल तर कोणतेही मोठे काम अशक्य नाही हे या जोडप्याने सिद्ध करून दाखविले असे म्हणता येऊ शकेल.
              स्वतः डॉक्टर होऊनही कुणा देशभागिनिवर उपचार करण्याची संधी आनंदीबाईंना मिळालीच नाही.

लोकप्रिय संस्कृतीतील चित्राणे: आनंदीबाई यांच्या जीवनाचा आढावा घेणारा “आनंदी गोपाळ ” हा मराठी चित्रपट फेब्रुवारी २०१९ मधे प्रदर्शित झाला दिग्दर्शक समीर विद्वांस या चित्रपटाला पुणे फिल्म फाउंडेशन आणि राज्यसरकार यांच्यातर्फे जानेवारी २०२० मधे आयोजित केलेल्या १८ व्या पुणे आंतरराष्ट्रीय चित्रपट महोत्सवाच्या मराठी विभागात पहिला पुरस्कार मिळाला आहे.
              आनंदीबाई जोशी यांच्या संघर्षगाथेवर अंजली कीर्तन यांनी एक डॉक्यूड्रामा तयार केला आहे. या लघुपटाला महाराष्ट्र सरकारचा सर्वोत्कृष्ट लघुपटाचा पुरस्कार मिळाला आहे.

धन्यवाद....

लेखिका 
निकिता आढाव 
First Year
Interior Design
Envisage Institute Of Design












WOMAN'S DAY 2020

"A Small Change in Our Thought About Woman,
Can Bring A Big Change In Her Life"




We humans have a general perceptional opinion about a woman from decades and the same is passed on through generation to generation.

Sometimes, it is our thoughts that really makes a woman weak than she actually is.

Because every women is capable of something or the other. But we convince her that she can't and so she don't even dare to make a trial also.

So the question is how can we bring up a change & give strength to a woman? The answer is within us. It all makes a difference when you analyse a girl:-

As "After all she is a girl, so she should stay at home so that she don't get raped" 
or As "Girl must be respected so that she don't get raped".

As "After all she is a mother, she must take care of the child"
or As "She is a mother and lets help her to bring up her child well".

As "After all she is a girl, its not her cup of tea, Let her out from the work team"
or As "She is strong enough to face challenges lets include her in the team".

As "After all she is married, so she depends on her husband"
or As "She is married & she stands for him so she needs to be treated equally".

As "After all she is girl, she doesn't need education to cook for family"
or As " She is a girl and she is capable/responsible for bringing up a good family, lets educate her".

As "After all she is a girl and she is dependent"
or As "She is a girl and she is more stronger and she just need support & nothing else".

So, how do you think about a woman???

Thank you,

Article written by -

Ms. Arvi Shantha 
First Year
Fashion Design Department
Envisage Institute Of Design












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