(जागतिक महिला दिन)Best Fashion and Interior Design Institute in Borivali (west), “Envisage Institute of Design”

                      भारत में महिलाओं की स्थिति 
                              (जागतिक महिला दिन)

आज़ आज़ादी के ७० सालों बाद भी भारत में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। आधुनिकता के विस्तार के साथ साथ देश में दिन प्रतिदिन महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की संख्या के आंकड़े चौंकाने वाले है। उन्हें आज भी कई प्रकार के धार्मिक रीती रिवाजों, कुत्सित रूढ़ियों, यौन अपराधों, लैंगिक भेदभावों, घरेलु हिंसा, निम्नस्तरीय जीवन शैली, अशिक्षा, कुपोषण, दहेज़ उत्पीड़न, कन्या भ्रूणहत्या, सामजिक असुरक्षा, तथा उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। हालांकि पिछले कूछ दशकों में रक्षा और प्रशाशन सहित लगभग सभी सरकारी तथा गैरसरकारी क्षेत्रों में महिलाओं की बढाती भागीदारी, सुधरते शैक्षणिक स्तर, खेल, कौशल, सिनेमा, व्यापार, विज्ञान, और बदलता सामजिक नजरिआ, तथा उनके अधिकारों का कानूनी संरक्षण में भारी बदलाव देखा जा रहा है।लेकिन जब तक हमारे समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर मानने की मानसिकता विकसित नहीं होगी तब तक महिलाओं को उनका पूरा हक़ नहीं मिलेगा।
कित्तूर की रानी चिन्नम्मा 
        वैदिक काल में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त थे। उन्हें यज्ञ में शामिल होना, वेदों का पाठ करना तथा शिक्षा हासिल करने की आज़ादी थी। प्राचीन भारत में मान्यता थी के जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहा देवता निवास करते है। बाद में स्मृतियों ने (मनुस्मृति ) स्त्रियों पर पाबंदिया लगाना शुरू किया, जिस वजह से महिलाओं की स्थिति में गिरावट आना शुरू हुआ। इस्लामी आक्रमण के बाद तो भारतीय महिलाओ की स्थिति और भी ख़राब हो गई। इसी समय पर्दा प्रथा , बाल विवाह, सती प्रथा, जौहर प्रथा और देवदासी जैसी घृणित धार्मिक रूढिया प्रचलन में आई। मध्ययुग में भक्ति आंदोलन ने महिलाओं की  स्थिति को सुधारने के प्रयास जरूर किये, पर वो उस हद तक सफल नहीं हुआ। सिर्फ कुछ स्त्रिया जैसे की मीराबाई, अक्का महादेवी, रामी जानाबाई और लालदेद  ही इस आंदोलन का हिस्सा बन सकी। इसके तुरंत बाद सिख
धर्म प्रभाव में आया, इसने भी युद्ध नेतृत्व एवं धार्मिक प्रबंध समितियों में महिलाओ एवं पुरुषों की बराबरी के उपदेश दिए। अंग्रेजी शासन ने अपनी तरफ से महिलाओं की स्थिति को सुधारने के कोई विशेष प्रयास नहीं किये लेकिन १९ वी सदी के मध्य में अनेक धार्मिक सुधारवादी आंदोलन किये गए। जैसे ब्रह्मा समाज ( राजा राममोहन राय ), आर्य समाज ( स्वामी दयानन्द सरस्वती ), थिओसोफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण मिशन ( स्वामी विवेकानंद ), ईश्वरचंद विद्यासागर ( स्त्री शिक्षा )महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाईफुले ( दलित स्त्रियों की शिक्षा ) आदि ने अंग्रेजी सरकार की सहायता से महिलाओं के हित में
सती प्रथा का उन्मूलन १८२९ ( लार्ड विलियम बेंटिंक ) सहित कई कानूनी प्रावधान पास करवाने में सफलता हासिल की। इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद इस दौर में युद्ध, राजनीति,साहित्य,शिक्षा और धर्म से कुछ सुप्रसिद्ध स्त्रियों के नाम उभरकर सामने आते है। जिसमे से रजिया सुल्तान ( दिल्ली पर शासन करनेवाली एकमात्र महिला साम्राज्ञी ) गौंड की महारानी- दुर्गावती, शिवाजी महाराज की माता- जिजामाता, कित्तूर की रानी- चेन्नम्मा, कर्णाटक की महारानी- अब्बक्का, अवध की सह्शासिका बेगम हजरत महल, आगरा की नूरजहां, तथा झाँसी महारानी- लक्ष्मीबाई  के नाम प्रमुख है।
                  यु तो पहले भी माता तपस्विनी, मैडम कामा, और सरला देवी जैसी कई क्रांतिकारी महिलाये भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थी।

आजादी के बाद महिलाओं के लिए सामान अधिकार के कई अनुच्छेद बनाये गए।
लेकिन इतने सारे कानूनी प्रावधानों के बावजूद देश में महिलाओंपर होने वाले अत्याचारों में कमी होने के बजाऐ वृद्धि हो  रही है।
                भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में ७० के दशक से महिला सशक्तिकरण तथा फेमिनिज्म शब्द प्रकाश में आये जिनमे १९९० के भूमंडलीकरण तथा उदारवाद के बाद विदेशी निवास द्वारा शापित गैर सरकारी संगठनो के रूप में अभूतपूर्व तेज़ी आयी। इन संगठनो ने भी महिलाओं को जागृत कर उनमे उनके अधिकारों के प्रति चेतना विकसीत करने तथा उन्हें सामजिक आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
                स्त्री सुरक्षा और समता में उठाया गया हमारा प्रत्येक कदम किसी न किसी हद तक स्त्रियों की दशा सुधारने में कारगर साबित जो रहा है।  किन्तु समाज सुधार  की गति इतनी धीमी है के इसके यथोचित परिणाम स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाते। शिक्षा सभी दोषों से छुटकारा दिलाने का आधारभूत साधन है।  एक शिक्षित
जिजामाता 
स्त्री न केवल अपना बल्कि पुरे परिवार का कल्याण कर सकती है।  इसीलिए शिक्षा को केंद्र बनाकर तथा समुचित साधन और कानूनों का पालन सुनिश्चित  करके देश को महिला अपराध मुक्त बनाया जा सकता है।
               
रानी लक्ष्मीबाई 
आज की स्त्री कभी बेटि बनकर घर को सजाती है, तो कभी माँ बनकर अपने बच्चों की ज़िन्दगी सवारती है, जरूरत पड़ने पर आर्थिक सहायता देने और पुरषों के बराबर कंधे से कन्धा मिलाकर चलने में भी पीछे नहीं हटती।

धन्यवाद।

लेखिका
प्रतिमा कनोजिया
First Year
Fashion Design Department
ENVISAGE INSTITUTE OF DESIGN






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